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अश्वि॑ना मधु॒षुत्त॑मो यु॒वाकुः॒ सोम॒स्तं पा॑त॒मा ग॑तं दुरो॒णे। रथो॑ ह वां॒ भूरि॒ वर्पः॒ करि॑क्रत्सु॒ताव॑तो निष्कृ॒तमाग॑मिष्ठः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvinā madhuṣuttamo yuvākuḥ somas tam pātam ā gataṁ duroṇe | ratho ha vām bhūri varpaḥ karikrat sutāvato niṣkṛtam āgamiṣṭhaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अश्वि॑ना। म॒धु॒सुत्ऽत॑मः। यु॒वाकुः॑। सोमः॑। तम्। पा॒त॒म्। आ। ग॒त॒म्। दु॒रो॒णे। रथः॑। ह॒। वा॒म्। भूरि॑। वर्पः॑। करि॑क्रत्। सु॒तऽव॑तः। निः॒ऽकृ॒तम्। आऽग॑मिष्ठः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:58» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब शिल्पविद्याफल को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) सबके अधीश और सेनाके अधीश ! जो (ह) निश्चय (वाम्) आप दोनों का (रथः) (भूरि) बड़े (वर्पः) रूप से युक्त (सुतावतः) उत्पन्न ऐश्वर्य कोश के (निष्कृतम्) सिद्ध हुए विषय को (आगमिष्ठः) अतिशय करके प्राप्त होनेवाला (करिक्रत्) निरन्तरकारी है उससे जो (मधुषुत्तमः) मीठे रसों को निचोड़नेवाला (युवाकुः) मिला और अनमिला (सोमः) ऐश्वर्य का लाभ है (तम्) इसकी (दुरोणे) गृह में (पातम्) रक्षा कीजिये और अन्य देश से अपने देश में (आ, गतम्) आइए ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य शिल्पविद्या से अनेक कलायन्त्रों का निर्माण करके वाहन आदि को रचते हैं, वे अपने गृह कुल और देश में पूर्ण ऐश्वर्य कर सकते हैं ॥९॥ इस सूक्त में अश्वि शब्द से शिल्पीजनों का कृत्य वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह अट्ठावनवाँ सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ शिल्पविद्याफलमाह।

अन्वय:

हे अश्विना यो ह वां रथो भूरि वर्पः सुतावतो निष्कृतमागमिष्ठः करिक्रदस्ति तेन यो मधुषुत्तमो युवाकुस्सोमोऽस्ति तं दुरोणे पातं परदेशात् स्वदेशमागतम् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) सर्वाधीशसेनाधीशौ (मधुषुत्तमः) यो मधूनि सुनोति सोऽतिशयितः (युवाकुः) मिश्रिताऽमिश्रितः (सोमः) ऐश्वर्यलाभः (तम्) (पातम्) रक्षतम् (आ) (गतम्) आगच्छतम् (दुरोणे) गृहे (रथः) (ह) किल (वाम्) युवयोः (भूरि) बहु (वर्पः) रूपयुक्तः (करिक्रत्) भृशं करोति (सुतावतः) निष्पन्नैश्वर्यकोशस्य (निष्कृतम्) निष्पन्नम् (आगमिष्ठः) अतिशयेनाऽऽगन्ता ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या शिल्पविद्ययाऽनेकानि कलायन्त्राणि निर्माय यानादीनि निर्मिमते ते स्वगृहकुलदेशे पूर्णमैश्वर्यं कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥९॥ अत्राश्विशिल्पकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टपञ्चाशत्तमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे शिल्पविद्येने अनेक यंत्रे निर्माण करून वाहने तयार करतात ती आपले गृह, कुल व देशात पूर्ण ऐश्वर्य निर्माण करू कशतात. ॥ ९ ॥